Sunday, 11 June 2017

NIM Basic Course day 3 Rock Climbing


 हमारी रोप नंबर 07

                                    NIM में ये मेरा तीसरा दिन था सुबह 4:45 पे उठ गया और रोज की तरह 5:20 तैयार होकर चाय पीने चला गया चाय भी वही, पानी ज्यादा चीनी कम, दूध का नामो निशान कही कही... पर क्या करे एनर्जी के लिए पीनी पड़ती है, 5:50 फॉल इन पे पहुंच गए रोप के हिसाब से सब खड़े होते है आपने रूकसक लेके, इसके बाद सबकी गिनती होती है जो लेट आते है उनको वही सज़ा मिलती है उट बैठक, मेढक चाल या पुशअप निकलने की । खेर में तो समय से पहुँच गया 6 am हमे यहाँ से तेखला के लिए रवाना कर दिया गया ।


सुबह निकलने के समय का नजारा

                                                               अब सबसे पहले तेखला रॉकक्लीम्बिंग साइट के बारे के कुछ जानकारी देता हूं ये जगह हमारे इंस्टिट्यूट से लगभग 9 किमी दूर है जहाँ हमने अगले कुछ दिन पैदल जाना है वो भी 20-25  kg का रकसैक उठा के, साथ में मेरे जैसे को 8 -10 किलो की रोप भी उठानी होगी । फिर वहा पे हमे रॉकक्लीम्बिंग करनी है। ये साइट गंगोत्री रोड पे ही 4 किमी चलने के बाद मुड़ने पे आती है खेर हम निकल गए कुछ दूर चलने पे अहसास हो गया कि यहाँ बहुत मुश्किल आने वाली है बहुत बहुत भारी था रूकसक बैग, नानी याद आरही थी वो भी लगातार और जोर से, NIM से निकलने के बाद थोड़ी दूर तक ढलान है जहा कुछ घर बने हुए है उन्ही में से होते हुए हम निकले, फिर एक बड़ी सड़क आजाती है जिसपे 500 मीटर चलने के बाद हमारा रास्ता बदल जाता है,  यहाँ से हम एक नीले गेट में घुस गए जो बिजली विभाग के जीएसएस का इलाका था यहाँ से हम एक पगडण्डी पकड़ के चल दिए, जो लोकल रास्ता था, इससपे थोड़ी सी दुरी पर  एक  जगह बहुत बदबू  आ रही थी शायद ऊपर कोई गाय मरी  हुयी थी,वहा से भाग के रास्ता पार किया, तब तक आगे वाले काफी दूर निकल गए तो बस भागना चालू रहा, ये लगभग 1-2 किमी भागते हुए निकल गए, फिर हमने भागीरथी नदी का पुल पार किया और उत्तरकाशी के आबादी वाले इलाके में आ गए, यहाँ से आगे चढ़ाई चालू यहाँ भागीरथी नदी के पुल पर अल्टीट्यूट 3500 फ़ीट है आगे थोड़ी थोड़ी चढ़ाई फिर उत्तरकाशी से गंगोत्री वाली सड़क पे चलना हुआ, काफी देर इस रोड  दाहिने तरफ  मोड़ थोड़ी देर चढ़ाई मिली इस चढ़ाई में तेज़ प्यास लग गयी, अब यहाँ की सबसे खास बात यहाँ पूरे रास्ते में बीच मे रुकने के लिए सिर्फ एक जगह है जहाँ आप पानी पी सकते हो, वो वो भी 5 किमी चलने के बाद आता है ओर पानी भी खुद का लाया हुआ ही पीना है, हम तक़रीबन 7:05 पे यहाँ पहुंचे, फिर हमने पानी पिया और हल्के हुए तभी चलने की सिटी बज गयी और बेग उठा के भागे, यहाँ से काफी दूर तक भागया तब जाके सभी लोग लाइन में चलने लगे, यहाँ से आगे लगातार चढ़ाई ही चढ़ाई है हालत ख़राब होने लगी फिर एक जगह थोड़ा सा शॉर्टकट लिया गया वह थोड़ी सी कच्ची सीढिया आ गयी जहा पे थोड़ा धीरे चल रहे थे तो आराम मिल गया लेकिन ऊपर चढ़ते ही काफी दूर तक फिर भागना पड़ा, फिर काफी दूर तक लगातार चलते गए और एक मोड़ पर NIM का मील का पत्थर दिखाई दिया, यहाँ से हमे ऊपर चढ़ना है सीधी खड़ी चढ़ाई 500 मीटर, खेर ये तो मैं तो आराम से चढ़ गया बस वजन थोड़ा ज्यादा लग रहा था  ऐसे करते करते 6 बजे के निकले हुए 8 बजे हम TEKHLA ROCK-CLIMBING AREA पहुंचे । फिर वहाँ पिटी में 20-30 मिनट एक्सरसाइज करवाई गई ओर उसके बाद हमारे टिफन में हमे नास्ता दिया गया 3 पूरी छोले की सब्जी साथ मे दलिया, 1 मौसमी ओर चाय भी । चलो जैसा भी था कुछ तसली मिली पेट को, मेरी तो सबसे बड़ी कमजोरी ही भूख है खा खा के पेट इतना बड़ा कर रखा है पर क्या कर सकते है भूख लगती है तो खाना चाहिए, क्यों जाट भाई । नास्ते के बाद हमारी अगली क्लास लगी रॉक क्लाइम्बिंग के सिद्धांत और क्या होती है रॉक क्लीमम्बिंग-

                                                 सच बताऊ आज तक सिर्फ फिल्मो में ही देखा था ये सब खुद करने के विचार से ही पसीने छूट रहे थे , सामने एक बोल्डर ( बड़ा पत्थर जिसमे आज तक चढ़ने का सोच भी नहीं सकता था) उसके पास खड़े है हमारे टीचर,  यहाँ की सबसे बड़ी खासियत ये ही है कि सब कुछ प्रैक्टिकल करके ही क्लास दी जाती है अब टीचर ने क्लास लेनी चालू की तो समझ आया कुछ कुछ, बाकी उन्होंने प्रक्टिकल करके दिखाया तो लगा कि शायद में भी कर लूंगा, तो ठीक है 60 मीनट की क्लास के बाद ही हमारा नंबर आगया, 10 बोल्डर पे चढ़ना था आज, अलग अलग तरह की क्लीमम्बिंग के लिए वो बोल्डर मार्क किये गए थे पर पहले पे ही चढ़ते समय समझ आगया की हम तो बस कागजी शेर है हमारे बस का ना है यह चढ़ना वढ़ना

विनोद गुसाईं (VINOD GUSAIN)

                                 इस क्लास की जानकारी से पहले आज हमें हमारे रोप के इन्सटेक्टर मिले जिनका नाम है VINOD GUSAIN, जो कि उत्तरकाशी के ही रहने वाले है, 2009 में एवरेस्ट फतेह की है उन्होंने ओर यहाँ NIM में 12 साल से इन्सटेक्टर है उसके अलावा भी उन्होने शिवलींग, भागीरथी 1-2 , सतोपंथ समिट किया हुआ है और भी काफी समिट किये है, उनका व्यवहार बहुत अच्छा लगा बात करने में एक दम सिंपल ओर मधुर भासी व्यतित्व वाले इंसान है हमारी सारी रोप को वो पसंद आये, विनोद सर बहुत ही रोचक सख्सियत है इनकी पूरी जानकारी आगे के एक लेख में दूंगा, उसके अलावा आज हमारी रोप में एक साथी नया जुड़ा जिसका नाम जय है जो कि भोपाल का रहने वाला है और पेशे से एक स्टूडेंट है उसके आने से हमारी रोप में टोटल 6 लोग हो गये ओर हमारे कौर्स में 67 ।

                                      अब वापस आते है क्लास में ... सर ने बोला सबसे पहले हम सबसे आसान वाला करते है चलो भाई करते है ...आसान वाह वाह.....  ये अगर आसान है तो मुश्किल क्या होगा पहले बोल्डर पे चढ़ते समय बस यही सोच रहा था बाप रे इतना मुश्किल होता है पत्थर पे चढ़ना, ये आज ही पता चला था एक जरुरी बात इन बोल्डर पे चढ़ने के लिए रबर सोल वाले स्पेशल शूज आते है जो कि हमे NIM ने ही दिए है, इनको PA शू भी बोलते है, उन्ही से हम धीरे धीरे  5 पत्थरो पे चढ़ गए,  अब जब हम छटे वाले पे चढ़ रहे थे तभी नए साथी जय के पैर आपने आप मुड़ने लगे शायद कुछ कमजोरी की वजह से खिंचाव आगया था, डॉक्टर वहाँ हमेशा पास ही रहते है सर ने तभी आवाज देखे डॉक्टर को बुलवा लिया और हम ने जय को छोड़ के छठे बोल्डर पे चढ़ाई चालू कर दी, टोटल 10 बोल्डर में से 1 पे मुझ से नही चढ़ा गया, बाकी पे थोड़ी या ज्यादा मेहनत और मेरे रोप के साथियो के सहयोग से चढ़ गया हमारे ग्रुप में बाकी लोग रॉक क्लीमम्बिंग पहले भी करते रहे है तो उनको कम ही मुश्किल आयी, है अंतिम वाले बोल्डर में सर ने 3  बार चढ़ाया तो हालत ख़राब हो गयी पहली बार मुश्किल से चढ़ा, बिना तकनीक इस्तेमाल किये सिर्फ जोर लगा के चढ़ गया पर सर ने दुबारा तकनीक इस्तेमाल करके चढ़ने को बोला, इस बार बोल्डर के ऊपर के हिस्से पे जाके लटक गया और बड़ी मस्कत के बाद चढ़ा पर ये भी सर को पसंद नहीं आया तो तीसरी बार चढ़ने को बोल दिया इस बार हर एक होल्डर का इस्तेमाल किया और सही चढ़ा तब छोड़ा,  तो इस तरह हमारी ये क्लास 2 बजे खत्म हुई 2 बजे तक मेरी तो हालात पतली हो गयी हाथो में भयानक दर्द हो रहा था हमारे एक लेह वाले साथी को भी काफी दर्द था पर वहा एक ही इलाज़ है भर पेट खाना खायो सब अपने आप सही हो जाएगा । फिर हमने खाना खाया आज खाने में मटर मशरूम की सब्जी साथ मे आलू पालक ओर दाल चावल मिले भर पेट खा के थोड़ी देर के लिए सो भी लिए क्योंकि अगली क्लास 3 बजे थी 30 मिनट सोने के बाद क्लास की सीटी बज गयी । अगली क्लास रॉक क्लीमम्बिंग इकुपमेंट के साथ की थी जो कि हमे कल इस्तेमाल करके रॉकक्लीम्बिंग करनी थी
       इन इकुपमेंट मे मुख्य कुछ ये है
1. रोप
2. सीट हार्नेस
3. केरावीनर (स्क्रू और प्लेन )
4. PA शू
5. पिटोन
6. लॉन्ग सीलिंग
7. शार्ट सीलिंग
8. फ्रेंड्स
इत्यादि
            
             आज की क्लास में हमे इकुप्मेंट के साथ रॉक क्लाइम्बिंग सिखायी गयी इसके सारे बेसिक्स बताये गए , जो की हमे कल करने है इस क्लास का मैंने एक वीडियो बनाया है जो की यहाँ पे डाल रहा हु बाकी क्लास की जानकारी आपको कल खुद करके ही दूंगा, क्लास के बाद हमे चाय मिली और चाय के बाद 4 बजे हम वापस निकल गए, वापसी में रोड तक पैदल फिर निम की बस में हॉस्टल आगये, यहाँ शाम को 6 बजे से 7  बजे तक खेल हुए हमारे खेलने के कुछ क्षण मैंने वीडियो में कैद किये है उसके बाद 8 बजे तक मूवी देखने को मिली आज हमे एवेरेस्ट के एक भयानक हादसे पे बनी मूवी दिखाई गयी पर अंग्रेजी में होने की वजह से कम ही लोगो को समझ आयी।  उसके बाद रात का खाना खाया और सो गए। 

आज का वीडियो -

                                        


NIM का मेरा पूरा तजुर्बा आप क्रम के हिसाब से नीचे दिए लिंक से पढ़ सकते है -
1.NIM -Nehru Institute Of​​ Mountaineering.......बेसिक कोर्स मेरे साथ
2.NIM में ट्रेनिंग का श्री गणेश DAY -1
3. NIM Basic Mountaineering Course Day-2
4. NIM Basic Course Rock Climbing DAY -3


जीएसएस के अंदर वाली पंगडंडी -




पानी पीने वाली जगह



तेखला का इलाका यहाँ से चालू होता है





500 मीटर की खड़ी चढ़ाई


क्लास लेते इंस्टेक्टर



रॉक क्लाइम्बिंग करते मनीष सर



चाय पीते मेरे साथी




शाम को दिखाई फिल्म में अवलांच का एक दर्शय








Thursday, 1 June 2017

FIRST TIME ICE ROAD SACH PASS CROSSING बैरागढ़ से किल्लाड

FIRST TIME INDIA'S ICE ROAD SACH PASS CROSSED BY BIKER IN DEC

                                            रात को ताश खेलते और गपे मारते समय का पता ही नहीं चला, 10 बजे तक़रीबन हम कल की सोचते सोचते सोने अपने कमरे में चले गए, अब योगी भाई और मुझ को सपने में भी खाईया ही दिख रही थी ... कल क्या होगा यही चल रहा था पर हमारी तैयारी भी पूरी थी और ऐसे दमदार साथियो के साथ होने से हौसला वैसे भी बहुत बढ़ जाता है ऊपर से भगवान का दिया हुआ वरदान है आपने पास तो, मेरी नींद में कोई भी समस्या या चिन्ता व्यवधान नहीं डाल सकती आँख बंद करो और शटर डाउन 5 मिनट भी नहीं लगते सोने में, मजे से बढ़िया रजाई ओड के सो गया और सुबह जल्दी उठ भी गया। 
                   
                                           अब जल्दी उठने के कभी फायदे मिलते है तो कभी नुकसान भी, यहाँ फायदा मिला की सबसे पहले उठ के सबसे पहले फ्रेश हो गया, पर कोई और ना उठा तो वापस जाके लेट गया और इंतज़ार करने लगा कब दूसरे उठे और तैयारी करे चलने की, सबको पता था की जल्दी निकलेंगे तो ठण्ड से ही हालत ख़राब हो जाएगी, सब आराम से 6:30 तक उठे गये, फिर वो लोग तैयार हुए इतने में हमने भी सामान पैक कर लिया। तैयार होने के बाद हमने 2 लीटर जूस लिया और चामुण्डा होटल की और चल दिए। चामुण्डा यहाँ का इकलौता अच्छा होटल है रूम का 1200 से 2400 रुपए तक चार्ज लेता है और उसका रेस्टोरेन्ट भी ठीक है तो आज का नास्ता चामुण्डा होटल पे। जाते ही 8 आलू परांठे का आर्डर कर दिया क्युकी हमे पता था यहाँ से किल्लार तक खाने को हवा के अलावा कुछ नहीं मिलना है साथ में एक जूस की बोतल भी खोल ली और जम के नास्ता किया पराठे थे स्वाद, बस आलू पराठे में आलू कही मिले नहीं ....... चलो कोई ना मतलब पेट भरने से था वो भर गया और हमने वापसी की हमारे होम स्टे की तरफ, वहा से बैग लेके बाइक पे रखे और निकलने के लिए तैयार, समय सुबह 7:30 हम निकल गए अब बैरागढ़ से निकलते ही एक पुलिस बेरियर आता है जहा एक पुलिस वाला भाई LMG GUN लेके खड़ा है जिसपे एंट्री करनी होती है और यही से रास्ता बंद हो जाता है यहाँ हमने रात को ही आके एंट्री कर दी थी पर अभी कोई और भाई की ड्यूटी थी तो वो हमारे नाम रजिस्टर में देख के हैरान पर थोड़ी हिदायत के साथ जाने दिया उसने, और हिदायत भी एक ही जो सब दे रहे थे ध्यान से चलना धीरे धीरे और निचे उतारते समय ज्यादा ध्यान रखना, ठीक है भाई साहब कह के चल दिए। 

ये है अभी आगे सड़क और कालाबन

KALABAN CHAMBA TERRORIST ATTACK 
                                            बैरागढ़ से निकलते ही इस रोड की भयावतता से सामना हो जाता है  यहाँ से आगे सड़क बस पत्थरो की बनी हुयी है बाइक बड़ी मुश्किल से 20 किमी की स्पीड से चल रही है ऊपर से घना जंगल और उसका नाम कालाबन। बैरागढ़ में कुछ सालो पहले चौकी नहीं थी, ऐसी जगह ऐसी गन के साथ ड्यूटी करने की जरुरत क्यों पड़ी और आज तक रोड ना बनने के पीछे एक दुखद घटना है ये वाक्या 3 अगस्त 1998 की सुबह का है इस रोड का 2 जगह काम चल रहा था कालाबन और सतरुंडी और इसपे काम करने वाले यही के लोकल लोग थे जो काम करके घरो में सो रही थे तक़रीबन सुबह के 3 बजे डोडा से पाकिस्तान से ट्रेंड 10-15 आंतकवादियो ने यहाँ हमला कर दिया और सोते हुये हिन्दुओं को उनके घरो से बाहर निकला और लाइन में खड़ा कर दिया फिर सबको ऑटोमेटिक हथियारों से गोली मार दी उन्होंने दोनों जगह पे 35 हिन्दू मारे और इस हमले में 11 हिन्दू गंभीर घायल हो गए थे और उन 35 में से 11 हिन्दुओं को वो आपने साथ ले गए थे उनका सारा सामान लूट के उन्ही से उठवा के ले गए बाद में उन्हें मार दिया था सतरुंडी से जम्मू कश्मीर की बॉर्डर 30 किमी ही है इस एरिया को पांगी वेली बोलते है बताया जाता है इसी एरिया में उनकी लाशे मिली थी। वो समय भी आज की तरह कश्मीर के ख़राब हालत का था इस घटना से कुछ दिन पहले भी गुलाबगढ़ के पास 25 हिन्दुओं की हत्या कर दी गयी थी ये सारा काम लश्कर का था जिसके मुख्य आतकवादी बिल्लू गुज्जर को पंजाब पुलिस ने बाद में गिरफ्तार भी कर लिया था इस घटना के बाद पांगी वेली से हिमाचल के एंट्री पॉइंट पे और कालाबन से आगे परमानेंट पुलिस पोस्ट बना दी गयी अब पांगी वेली में बनी चौकी पे तो बहुत बड़ी सख्या में जवानो की ड्यूटी रहती है उस समय यहाँ सिर्फ 2 जवानो की ड्यूटी थी इस घटना का समाचार भी ड्यूटी पे तैनात घायल सिपाही ने 8 -10 किमी पैदल चलके फारेस्ट की एक पोस्ट पे दिया तब जा के इस घटना का पता सबको चला था तब तक आतकवादी कश्मीर एरिया में चले गए थे ये घटना जहा हुयी थी वहा एक बोर्ड़ लगा हुआ है जिसपे सारी घटना लिखी हुयी है




                          सुबह का समय जंगल का इलाका और ऊपर से इतनी भयंकर ठण्ड की साँस भी जम जाये, मेरे पास उस समय टेम्परेचर नापने वाली घडी नहीं थी पर शायद आज तक की सबसे ज्यादा ठण्ड यही लग रही थी 2  दस्ताने पहन रखे थे पर हाथ जम गए सिर्फ हल्का सा हिल पा रहे थे जिससे रेस देके बाइक धीरे धीरे आगे बढ़ा रहे थे थोड़ी देर में अंगुलियों में भयंकर दर्द होने लग गया दर्द सिर्फ मुझे नहीं साथ वालो को भी हो रहा था तो हमने थोड़ा रुके और बस चल दिए, ये परेशानी तो होनी ही है जब तक धुप न लग जाये और इस जंगल में धुप का कोई चांस नहीं है तो चलते रहो, थोड़ी दूर पे ही रास्ता बंद आगे एक जेसीबी मशीन लगी हुई थी रास्ते को चौड़ा करने में, शायद ये रोड जल्दी ही बनेगी ऐसी बाते मैंने सुनी थी उसी का काम चल रहा था, हम बाइक से उतर के इंजन पे हाथ गरम करने लग गये थोड़ा आराम मिला 20-25 मिनट में रास्ता खुल गया और हम चल दिए तक़रीबन 9 बजे थोड़ी सी धुप मिली तो रुक गए और फोटो खीची, फिर चल दिए अभी 90 मिनट में सिर्फ 15  किमी ही आये है तो सोचा अब स्पीड खीचते है लेकिन ये रोड ऐसी ही थोड़े आइस रोड है यहाँ से थोड़ा सा चलते ही पहले मोड़ पे बड़ा सा झरना आगया। इस मौसम में झरना तो चलता नहीं है बस आइस जमी रहती है अब ये आइस कम से कम 100-150 फ़ीट लम्बाई में थी और आज तक कभी मैंने या मेरे दूसरे किसी साथी ने आइस पे बाइक नहीं चलायी तो हम तो देख के हके बके रह गए, ये क्या है भाई ये तो छोटा सा झरना था और इसपे इतनी आइस तो आगे बड़े बड़े झरने है वहा क्या होने वाला है सब समझ आ रहा है पर कोई ना हमारी तैयारी थी इन झरनो को पार करने की, मैंने ये रोड जुलाई में देखा था तो आईडिया था की क्या होने वाला है इसलिए हथियार साथ लाये थे, निकला हथोड़ा और लग गए आइस तोड़ने, अबे ये क्या है इसपे तो बस निशान पड़ रहा है ये बहुत ताकत से टूटेगा, तो लग गया में हेलमेट पहन के आइस तोड़ने में जैसे तैसे करके पथरो और हतोडे से मार मार के छोटा सा रास्ता बनाया, यहाँ रोड की चौड़ाई 10-12 फ़ीट ही है और आइस का ढालान खाई की तरफ है क्युकी पानी उसी ढलान से जाता था और अब आइस भी उसी ढालान पे जमी हुयी है और निचे 1000 फ़ीट गहरी खाई अगर बाइक फिसली तो रुकना नामुमकिन है तो हमे बड़े ध्यान से बाइक निकलना होगा अब हम में से एक आदमी बाइक को चलायेगा, 2 दोनों तरफ से पकड़ेंगे और एक हथोड़ा लेके बाइक को सेफ रखेगा, सच में आज तक का सबसे खतरनाक अनुभव था ये बड़ी मुश्किल से पहली बाइक निकली फिर थोड़ा हौसला हुआ तो बाकि बाइक भी निकाल ली, ऐसे यहाँ 15 -20 झरने है सब पे ऐसे ही निकालनी पड़ेगी

कांच के जैसी है ये आइस रोड -




                                              धीरे धीरे आगे बढे 2 -3 झरने पार किये होंगे तभी एक बहुत बड़ा झरना आगया यही यहाँ का सबसे बड़ा झरना है काम से काम 200 मीटर लम्बा होगा, देख कर ही डर लग रहा था इस झरने को पार करने में हालत ख़राब हो गयी बड़ी मुश्किलों से बाइको को पार करवाया 2  जगह तो आइस ज्यादा टूट गयी तो बाइक पानी के अंदर बैठ गयी इतना ठंडा पानी हाथ लगाने की हिमत न हो उसमे पैर रख के बाइक को निकाला, हा एक बात जरूर थी रोड तो डरावनी थी पर झरना बड़ा सूंदर था हमने काफी देर रुक के फोटो लिए





                               यहाँ सनी भाई ने एक पर्चा और दिया, मैं जब झरने पे थोड़ा सा चढ़ के फोटो खींच रहा था तो भाई बोला मुझे इस जमे हुए झरने के ऊपर चढ़ना है तो हम ने मना किया मत लो ये पन्गा कही चोट लग जाएगी पर सनी भाई तो सनी भाई है नहीं माने, बोले लायो राकेश ये हतोड़ा दो मैं चढ़ के दिखता हु, मान गए भाई को भाई तो सटा सट ऊपर चढ़ने लगे 4-5 मिनट में ही कम से कम 10-15 फ़ीट ऊपर चढ़ गए अब वहा से ऊपर जाने का रास्ता न था तो भाई ने हथोड़ा वही टांगा और मुड़ के फोटो खींचने के लिए बोले तभी आइस ने अपना रूप दिखा दिया और भाई का पैर फिसल गया अब भाई 10 फ़ीट से फिसलते हुए निचे आ रहे थे और निचे बड़े बड़े पत्थर थे बड़ी मुश्किल से सर को बचाया लेकिन थाई पत्थर को लग गयी, और भाई को अच्छी खासी चोट लग, 1 फ़ीट की लम्बी रगड़ पड़ी शायद काफी दिन तक दुखी भी होगी, खेर भाई है तो शेर कहा इन चोटों को याद रखते है, पर हमे डर लगा कही कुछ हो जाता तो क्या मुँह दिखते, आगे से ध्यान रखेंगे और ऐसे पंगे किसी को भी नहीं लेने देंगे। अब मेरा हथोड़ा वही टंगा रह गया जिसको हमने पत्थरो से मार मार के निचे गिराया यहाँ भी सनी भाई का पत्थर ही निशाने पे लगा था।

                                     

सनी भाई झरने पे चढ़ते हुए
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                                   बड़े झरने को पार करने के बाद हमे एक जगह फिर काफी चौड़ा और लम्बा आइस कट और झरना मिला, बहुत ही सूंदर ऐसा लग रहा था मानो गिरते हुए ही जम गया हो यहाँ भी कुछ देर फोटो ली यहाँ बाइक बहुत फिसल रही थी तो एक छोटा सा वीडियो भी बनाया जिसका लिंक यहाँ दे रहा हु, फिर हम वहा से निकल गए कुछ दूर बार एक और झरना मिला यहाँ पानी बह रहा था और पानी के गिरने से डायमंड जैसे आइसकट बन रहे थे यहाँ भी कुछ देर रुक गए बस ये हमारा लास्ट स्टॉप है यही सोच के फुल स्पीड से निकल गए

डायमंड वाला झरना -



                                 अब यहाँ स्पीड थोड़ी देर के लिए ही होती है आगे का रास्ता बहुत भयानक है बड़े बड़े पत्थर सड़क पे निकले रहते है औ खड़ी चढ़ाई है सच पास तक बाइक बड़ी मुश्किल से  15-20 की स्पीड से चल रही थी पर हा रुके नहीं चलते गए चलते गए एक पास से पहले रोड में 1-2 फ़ीट तक गहरे खढे है उसमे बाइक फस गयी और ३ लोगो के धका मरने से भी बड़ी मुश्किल से चढ़ रही थी कुछ दूर बाद स्नो के कट आने लग गये तो आइस की मुसीबत काम हुयी पर एक जगह 50 मीटर स्नो के कट को पार करने के बाद सनी भाई की बाइक फिसल गयी खेर गति काम होने के कारण उनको चोट तो नहीं लगी पर फिर हम और संभाल कर बाइक चलाने लगे धके मार मार के हम सच पास 1 बजे पहुँच गए 30 किमी 6.30 घंटे में शाबाश मेरे शेरों नाम रोशन कर दिया शायद इतनी धीरे बाइक चलाने का यही इकलौता अनुभव है तो बड़ी बात यहाँ तक पहुचं गए, अब जूस पिया मदिर में पूजा की फोटो लिए और निकल लिए।

साच पास पे कुछ पल चेन के-


ये है साच पास से आगे की ढालान- 




                                  साच पास की ऊंचाई 14500 फ़ीट है और दिसंबर का महीना है तो यहाँ इस समय ऐसी ठण्डी हवा चलती है जहा चमड़ी मिल जाये उसको दर्द से जला देती है 1000 सुईया चुभने जैसी ठंडी हवा, जल्दी ही यहाँ से निकलने में भलायी है भाई फटाफट बाइक पे बैठे और बाइक स्टार्ट करके चल दिए. अरे ये क्या है पहले मोड़ से मोड़ते ही यही आवाज निकली और मैं वही रुक गया, साथ वाले भाई पहुंचे तो देख के राम राम राम जय भोले और जोर जोर से हंसी निकल रही थी ये सबका कारण नीचे का नजारा था, एक दम तीखी ढलान ऊपर से पूरी रोड पे स्नो पड़ी हुयी थी तो आइस भी न दिखने वाली साथ में इस साइड अब सूरज भी ना आएगा बहुत ही सुन्दर पर डरावना नजारा था और सिर्फ हंसी छूट रही थी जय भोले बोलते हुए निकले, बाइक स्टार्ट हो न हो कुछ फर्क नहीं है इतनी तीखी ढलान है की बंद बाइक को 100  की स्पीड में भगा लो, पर मुँह बाये खाईया हमारा ही इंतज़ार कर रही थी तो बड़ी मुश्किल से 10  की स्पीड में बाइक को ब्रेक पे ही चला रहे थे, ब्रेक में से भी ट्रक के जैसी चु चु कि आवाज आरही थी, 15 -20 मिनट में ही हाथो में भयंकर दर्द चालू हो गया इस साइड बहुत ज्यादा ठंडा थी सच बोलू तो इतना ज्यादा दर्द था की मन में आये हाथो को काट दू पर बाइक का इंजन ही हमारा मददगार बना, बार बार हाथो को गरम किया और आगे बढ़ चले, ये सफर बहुत भयानक था बस इतना ही कहना चाहूंगा इससे ज्यादा शब्द नहीं है मेरे पास, जैसे तैसे करके ये तीखी ढलान पार की, यहाँ धीरेन्द्र भाई हम से आगे निकल गए उनकी बाइक की स्पीड हम से तेज़ थी पर कुछ दूर जाके वो एक आइस कट पे फिसल गए बस भगवान का आशीर्वाद रहा की चोट ना लगी, न बाइक फिसल के खायी में गिरी, हम जब तक पहुंचे वो खड़े हो गए थे यहाँ तीखी ढलान खत्म हो गयी थी पर ढलान तो थी , कुछ दूर बाद दूसरा आइस कट मिला बहुत ही फिसलने वाला और इसकी ढलान भी बहुत ज्यादा थी तो हम ने उतर कर मिल के बाइक निकाली पर बड़ी मुश्किलों से यहाँ से बाइक निकल पायी। 


सच पास से आगे की ढलान पे बाइक दौड़ती हुयी-



                      इसके बाद कुछ दूर तक लैंड स्लाइड का इलाका आगया यहाँ सड़क छोटे छोटे पत्थरो से बनी हुयी थी ओर वही पत्थर निचे खिसकते रहते है ये पत्थर सड़क पे बनाते समय निचे डालने वाले पत्थर थे जो हमारे यहाँ भी डाले जाते है इनको रोड़ी बोलते है इनपे बाइक के टायर को ब्लेंस बनाना मुश्किल होता है तो फिर हमारी स्पीड कम हो गयी, अब हमारे शरीर में थकावट आने लगी थी, ब्रेक और क्लच दबा दबा के हाथो में दर्द आगया था, ऊपर से आगे की अगुलिया ठण्ड से दर्द कर रही थी धीरे धीरे शाम भी हो रही थी और यहाँ आदमी तो छोड़ो कोई पक्षी का भी नामो निशान नहीं था तो अगर कुछ हो जाये तो मदद तो भूल ही जायो, सबसे बड़ी समस्या साच पास से आगे मैं भी पहली बार ही आया था तो कहा क्या मिलेगा कुछ आईडिया नहीं, बस चले जा रहे थे चले जा रहे थे, इसी बीच एक जगह स्नो का झरना आया यहाँ ऊपर से पानी गिरे और निचे आने तक वो स्नो बन जाये, सूंदर अविश्वनीय नज़ारे मिले कुछ दूर पे ही हमे आइस स्टिक का एक झरना मिला इसका वीडियो भी मैं यहाँ डाल रहा हु जरूर पसंद आएगा इसके बाद हम कही नहीं रुके बस चलते गए

                        

                                       अरे हां एक और बात याद आयी, सनी भाई और धीरेन्द्र को मैंने उनके लक्षणो को देख के पीछे चलने का बोल दिया था और मैं आगे चल रहा था यहाँ फिर एक गड़बड़ हो गयी मैं एक मोड़ से थोड़ा आगे निकल गया और वो पीछे रह गए, फिर तक़रीबन 5 मिनट चलने पे ध्यान दिया की वो पीछे नहीं आरहे है लो जी हो गया कांड, मैं वही रुक गया और उनका इंतज़ार करने लगा साथ में जोर जोर से आवाज भी देने लगा जिससे उनको कोई रिप्लाई आजाये और पता लग जाये पर नहीं, बड़ी मुश्किल से 5 मिनट इंतज़ार कर पाया फिर योगी को वही उतर के वापस चला उनको देखने, इस रोड पे दो लोगो को लेके बाइक बड़ी मुश्किल से ही वापस जा सकती है और इस चिंता के समय तेज़ स्पीड चाहिए थी तो अकेला ही चला, मन में हज़ार तरह की शंकाये, भगवान करे सब सही हो, दिन में आज धीरेन्द्र भाई की बाइक काफी परेशान कर रही थी कही उसमे कुछ समस्या ना हो गयी हो, यही चल रहा था दिमाक में, कुछ दूर चलने पे वो आते हुए दिखाई दिए तब जान में जान आयी। उन्होंने मुझे वापस आते देख लिया और समझ गए की आज तो डांट पड़ेगी, मिलते ही सबसे पहले पूछा क्या हुआ सब ठीक है ना, हा ठीक है बस फोटो खींचने के लिए रुक गए थे, ओह तेरी और यहाँ मैं चिंता से मरे जा रहा था फिर हम साथ में ही निकले सब किसी को रुकने की छूट नहीं थी किल्लाड़ जाके ही रुकेंगे, यहाँ से बाइक भी 30 की स्पीड में चलने लग गयी थी लेकिन धीरे धीरे रात होने लगी और कही किलाड़ का नामो निशान भी ना दिख रहा था यहाँ तक की किसी पहाड़ पे एक लाइट भी नहीं दिख रहे थी, कुछ देर में फुल अँधेरा हो गया। 


बाइक की रौशनी में पुल का फोटो-





                                         अब आगे कुछ दिखयी नहीं दे रहा था बस चले जा रहे थे, काफी देर बाद एक पुल आया और उसके बाद पक्की सड़क, तो लगा की अब शायद पहुँच जायेंगे, तक़रीबन 10 किमी बाद किल्लाड आगया, किल्लाड की लाईट देख के ही जान में जान आगयी थी, वैसे मैं रात को बाइक नहीं चलता हु पर ऐसी जगह जब आप फस जायो तो क्या कर सकते हो।  रात को बाहर रुकना यहाँ तो मौत ही होती है, खेर हम सही सलामत किल्लाड़ पहुँच गए, सबसे पहले एक होटल लिया शायद 300-400 रुपये का कमरा था नोटबंदी के हिसाब से ठीक था फिर मस्त खाना खाया और रूम में आगये फिर कंधो पे मूव लगा के ताश खेली और सो गए। वैसे आज तो खतरनाक वाली नींद आने वाली है काम भी तो ऐसा किया है 12 घण्टे में 70 किमी, कल हम इस दुनिया की सबसे मुश्किल रोड पे बाइक चलाएंगे तो उसकी जानकारी अगले भाग में -
 
पूरा यात्रा वर्तान्त पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
India's Deadliest ice road killar kishatwar bike trip in december
1. sach pass ice road दिल्ली से बैरागढ़
2.
sach pass ice road बैरागढ़ से किल्लार - भयंकर


इस यात्रा एक छोटा सा वीडियो यहाँ देखे -
                              

                               


कुछ फोटो -
कम से कम 150 फ़ीट ऊंचाई होगी इस झरने की -




सच पास से पहले का भयानक रास्ता -




साच पास पे मस्ती के कुछ पल


आइस स्टिक वाला झरना- 


पांगी पहुँचने पे सबसे पहला बोर्ड यही दिखा -