केदारनाथ त्रासदी की बरसी के मौके पर एनआईएम के जांबाजों के जज्बे को सलाम |
केदारनाथ त्रासदी की बरसी के मौके पर तमाम बातों में तकलीफ, अव्यवस्था, लापरवाही जैसे विषय घुले मिले हैं। सिर्फ चार धाम यात्रा सुखद अहसास करा रही है। यात्रियों से अटे पडे़ यात्रा मार्ग के संदेश एकदम साफ हैं।
चार धाम यात्रा की गाड़ी सरपट दौड़ रही है। साथ में दौड़ रही है हम सब की उम्मीद की इस बार तो यात्रा के सीने पर चस्पा आपदा के दाग पूरी तरह से धुल जाएंगे। अब तक 15 लाख यात्री उत्तराखंड पहुंच चुके है जिसमे 309764 यात्री केदारनाथ के दर्शन कर चुके है और अभी चार महीने की यात्रा शेष है | ये संख्या 2012 में आये 573040 का आकड़ा छू सकता है अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो | त्रासदी की बरसी पर इसमें बहे लोगो को श्रद्धांजलि पर इसमें कोई दो राय नही उनका सम्मान भी किया जाना चाहिए जिन्होंने विषम परिस्थितियों में कार्य करते हुए केदारधाम को न केवल यात्रियों के लिए अनुकूल बनाया, बल्कि यात्र शुरू कराने में भी अहम भूमिका निभाई।
सरकार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी केदारनाथ धाम की यात्रा में सबके चेहरे खिले हुए है | 2013 जून में आई आपदा के 9 महीने बाद में सोचना मुश्किल था की 2014 में यात्रा शुरू हो पायेगी | सरकारी संस्थानों ने हाथ खड़े कर दिए थे ऐसे में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की टीम लीडर प्रिंसिपल अजय कोठियाल के साथ आगे आई और रास्ते नहीं खुलने की अटकलों पर विराम लगा दिया | आपदा के बाद केदारनाथ धाम यात्रा शुरू कराने की चुनौती से निपटने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दो मार्च को देहरादून में बैठक बुलाई | यात्रा शुरू कराना असम्भव माना जा रहा था | ऐसे में एनआईएम के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल ने आगे आकर चुनौती को स्वीकार किया | चार मार्च को केदारधाम की हेलीकाप्टर से रेकी की गई | इसके बाद कोठियाल ने टीम का सलेक्शन किया और रणनीति बनाकर इसे धरातल पर उतारने की तैयारी शुरू हुई | 10 मार्च को एनआईएम की टीम 230 मजदूरों के साथ सोनप्रयाग पहुंची | सोनप्रयाग से रामबाड़ा तक लोनिवि के लिए इन्ही मजदूरों ने 11 किमी रास्ता बनाया | 17 मार्च को एनआईएम ने सोनप्रयाग में बेस कैंप तैयार किया और 21 मार्च को रामबाड़ा से केदारनाथ तक टीमें बनाकर 11 किमी का रास्ता तैयार करने का काम शुरू किया | बर्फ से ढके रास्ते को काटकर 15 अप्रैल को केदारनाथ तक रास्ता खोल दिया गया | इसके बाद एनआईएम की टीम ने महज 13 दिन लेंचुली में तीन हेलीकाप्टर उतरने लायक पक्का हेलीपेड बना डाला | लागत आई महज 25 लाख रूपये | धाम में केदारनाथ मंदिर पहुंचने के लिए उस जगह पुल बनाना जरूरी था , जहां से आपदा के दौरान एक एसडीएम की बहने से मौत हो गई थी | लोनिवि ने 25 तक यहां बेली ब्रिज बना पाने की बात कही | एनआईएम ने एक मई को टास्क लिया और तीन मई को यहां 8 मीटर चौड़ा और 24 मीटर लंबा बेली ब्रिज तैयार कर डाला | कर्नल और उसके जांबाज के थे ये टास्क --
1. कर्नल अजय कोठियाल -- एनआईएम के प्रधानाचार्य कोठियाल ने इस टास्क के दौरान दिखाया की टीम वर्क में कितनी ताकत होती है | उनके जज्बे के आगे टास्क छोटा पड़ा |
2. डीआईजी जीएस मर्तोलिया --एसडीआरएफ के चीफ मर्तोलिया ने पूरी अवधि में टीम का न सिर्फ मार्गदर्शन किया बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी किया |
3 . परवेंद्र डोभाल -- एसडीआरएफ के एएसपी डोभाल ने अपने 40 जवानों के साथ पूरे यात्रा मार्ग पर एनआईएम टीम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया |
4. दशरत सिंह रावत -- एनआईएम के दशरत ने रामबाड़ा से आगे ATV के माध्यम से निर्माण सामग्री आदि जरूरत का सामान सप्लाई करने की जिम्मेदारी संभाली |
5. गिरीश राणाकोटी -- एनआईएम के गिरीश ने लेंचुली से केदारनाथ तक चार किमी हिस्से में बर्फ काटकर रास्ता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
6 . मनोज सेमवाल -- एनआईएम के मनोज सेमवाल बेस कैंप पर क्वाटर मास्टर की भूमिका निभाई | समय पर जरुरत का सामान उपलब्ध कराना उनकी जिम्मेदारी थी |
7. रणजीत सिंह -- एनआईएम के रणजीत ने सोनप्रयाग से केदारनाथ तक संचार व्यवस्था इन्होने संभाली | आठ वॉकी टॉकी सेट के माध्यम से समय पर जरूरत का सामान एव मदद मौके तक पहुंचाई जा सकी |
8 . कृष्ण कुड़ियाल -- उत्तरकाशी के आर्किटेक्ट केसी कुड़ियाल ने रास्ता , हेलीपैड , पुल आदि निर्माण में अपने कौशल का परिचय दिया |
9. योगेंद्र राणा -- रामबाड़ा और आसपास के छेत्र में रास्ते के निर्माण की जिम्मेदारी योगेंद्र ने संभाली |
10. कमल जोशी एव धर्मेश -- इन्होंने मजदूरों को साथ लेकर छोटी लेंचुली में रास्ता तैयार किया |
11. देवेंदर -- पूरे दिन में हुए कार्यों की प्रगति रिपोर्ट कर्नल को देना ताकि अगले दिन की रणनीति बन सके |
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