Friday, 24 April 2020

सतोपंथ एक साहसिक यात्रा 7075 मीटर

*नमस्कार*


सर्च एंड रेस्क्यू कोर्स करने के बाद कुछ बड़ा करने की बड़ी तीव्र इच्छा थी और ये मौका दिया हमारे इन्सटेक्टर सौरव सर ने सतोपंथ के रूप में।


*सतोपंथ* 7075 मीटर की गंगोत्री ग्लेशियर में एक दुर्गम चोटी है। यहाँ जाने के लिये हमारी 7 क्लाइंबर 1 टीम लीडर ओर 3 शेरपा की टीम बनी। हम 15 सितम्बर को दिल्ली से निकले 16 को उत्तरकाशी से इकुपमेंट लेके 18 को गंगोत्री पहुंचे। यहां 2 दिन बॉडी को पहाडो के लिए एक्मेटाईजेसन करके 20 की सुबह माँ गंगा के दर्शन करके यात्रा के लिए निकले।  

      हमारे पास हमारा इकुपमेंट और पेर्सनल किट मिला के तकरीबन 22 किलो वजन था। राशन ओर रोप के लिए 40 पोर्टर किये ओर 20 की दोपहर गोमुख जाके sdrp के कैम्प में रुक गए। मौसम खराब था और भीड़ भी थी तो हमने ट्रॉली से पोर्टर का सारा सामान नदी की दूसरी ओर डलवा दिया। जिससे सुबह जल्दी निकलने में परेशानी न हो लेकिन इसी चक्कर मे बारिश में भीग गए। खैर कपड़े बदल के गरमा गरम खाना खा के सो गए और सुबह 7 बजे नास्ता पैक करके आगे की ओर निकल गए। 

    21 की सुबह 9 बजे गोमुख के दर्शन किये , बहुत ही अद्बुत जगह है।  गोमुख ओर यही से हमारा मुश्किल रास्ता चालू होता है ग्लेशियर की सीधी 200 फ़ीट की चढ़ाई ओर फिर क्रेवास में से बच के चलना तकरीबन 4 घण्टे चलने के बाद हम नंदन वैन के नीचे पहुंच गए। यहाँ से नंदन वन के लिए 2 घण्टे की खाड़ी चढ़ाई थी और यही सबसे मुश्किल भी। फिसलन ओर कीचड़ की वजह से बहुत मुश्किल हुई नीचे क्रेवास में जाने का खतरा दर का बड़ा कारण था। खैर टीम वर्क की वजह से ये भी पार किया और एक खुले मैदान में पहुंच गए। यही रहा नंदन वन,वन तो बस नाम का ही था एक तरफ भागीरथी 1-2-3 बर्फ से आच्छादित दूसरी ओर शिवलिंग का अदभुत नजारा था। नीचे की ओर दूर दूर तक फैला ग्लेशियर आगे केदारडोम का भव्य नजारा। सबने मिलके पहले किचन टेंट लगाया फिर आपने सारे टेंटयहां अक्सर 3 बजे के बाद मौसम खराब हो जाता है तो सारी तैयारी जल्दी ही करनी होती है और ये टीम वर्क से ज्यादा आसान हो जाता है। 


 अगली सुबह 22 को हमने समान पैक किया और अगले ठिकाने की ओर चल दिये जो कि यह से बस कुछ दूर पर ही था लेकिन बीच मे एक ग्लेशियर था। इसको पर करने के लिए जितने ऊपर आये थे उतना ही नीचे उतरे और फिर रोप के सहारे एक खड़ी चढ़ाई में रकसैक के साथ चढ़े।  ये रोमांच का अगला चरण था पर मज़ा आया।  अब हमारे सामने हमारा बैस कैम्प बासुकी ताल था। 

यहां भी पहले किचन टेंट फिर  आपने टेंट लगाए और खाना खाया।  शाम को पास की एक पहाड़ी में एक्मेटाईजेसन के लिए चले गए 


   अगली सुबह यही आराम किया और पास में आयी हुई एक ओर टीम से मुलाकात की जिन्होंने आपने कैम्प 1 लगा लिया था और कैम्प 2 के लिए आये थे। फिर शाम तक आपने लोड को बांटा जिसको हम कैम्प 1 ओर 2 लेके जाना था।  पोर्टर सिर्फ बेस कैम्प तक ही जाते है तो यहां से आगे सारा सामान हमने कुछ चक्करो में कैम्प 1-2 पहचान है। 

अगली सुबह 24 सितम्बर को हम लोग लोड फेरी लेके कैम्प 1 गए , बेस कैम्प से 1 घण्टे की सीधी दूरी के बाद हमे सीधे हाथ की ओर मुड़ना होता है और यही से हमे हमारी मंजिल नजर आयी। बहुत बहुत ही विशाल बर्फ से भरा हुआ सतोपंथ देख के ही समझ आगया की कितना मुश्किल होगा ये रास्ता। अब बारी कैम्प 1 की तकरीबन 3 घण्टे और चलने के बाद ये जगह ग्लेशियर में ढलान पे थी। बड़े बड़े पत्थर और बीच बीच मे ग्लेशियर निकल हुए था। यही पत्थरो को सही करके एक टेंट लगाया जिसमे हमने आज का सामान रखा और वापस बेस कैम्प आगये। ऐसे ही कुछ दिन चला जिसकी तबियत खराब होई टीम में से वो नही जाता बाकी सब समान लेके जाते । 


27 सित्तबर को हम में से मेरे सहित 3 साथी और 3 शेरपा जिनकी तबियत सही थी वो कैम्प 1 में शिफ्ट हो गए वहाँ से 29 को हमने कैम्प 2 के लिए लोड फेरी चालू की।  अब वे रास्ता था असली मॉन्टेनेरिंग । 

   28 की सुबह समान ओर टेंट लेके हम 4 साथी निकले थोड़ी दूर पे ही सबसे बड़ा क्रेवास जिसमे कुछ साल पहले पूरी टीम गिर गयी थी देख के ही होश फाख्ता हो गए थे।  इससे क्रेवास के बाद साइड वाली पहाड़ी पे से जाना था जिसमे रोप फिक्स पहले दिन शाम को ही फिक्स की थी। ये हमारे चढ़ाई की सबसे मुश्किल जगहों में से एक थी। 1 किमी की दूरी 5000 मीटर की ऊंचाई में दौड़ के पार करनी थी क्योंकि कभी भी ऊपर से आइसपिनेकल गिर सकते थे।  खैर ये तो पार कर ली लेकिन इससे आगे रोप फिक्स करते हुए जाना था और यह था एक 100 मीटर का जमा हुए झरना तकरीबन 2-3 घण्टे लगे हमे इसको चढ़ने में, फिर कुछ दूर सिर्फ खड़ी बर्फ की चढ़ाई।  हम कैम्प 2 की बिल्कुल नीचे पहुंच गए। अब यहाँ एक बड़ी मुसीबत थी पहले वाला रास्ता बंद हो गया था क्योंकि उसमें 50 मीटर चोडा क्रेवास खुल गया था और हमे दूसरे रास्ते से जाना था। जहाँ से पहले वाली टीम गयी हुई थी इस उचाई में बिल्कुल कच्चा पहाड़ छोटे छोटे पत्थर लगातार गिर रहे थे जिसको देख के ही रोमांच आरहा था।  खैर 2 घण्टे की मेहनत के बाद हम कैम्प 2 पहुचे, लेकिन ये काफी लेट था 2 बजे चुके थे और मौसम खराब होने लग रहा था जल्दी से टेंट लगाया सामान रखा और वापस निकल लिए।  सुबह 7 बजे के निकले हुये भूखे ओर थके हारे वापस शाम 6 बजे पहुंचे जहां पहले से रुके साथी ने सुप तैयार कर रखा था। सच मे इस सुप जैसा कुछ नही था फिर खाना बनाया और सो गए अगली सुबह वापस बेस कैम्प चले गए । 
29 सितम्बर को पूजा करके सारा सामान लेके हम फाइनल क्लाइंब के लिए निकले और पूरी टीम कैम्प 1 में आ गयी। 30  सितम्बर को हमारी पहली टीम सामान लेके लास्ट लोड फेरी के लिए कैम्प 2 गए और वहाँ 1 टेंट ओर लगा आये पर इसी शाम हमारे लिए 2 बुरी खबरे आयी, पहली आगे गयी हुई टीम के मेंबर की तबियत खराब होने की वजह से वो वापस आ गये ओर दूसरी हमारे सौरव सर की तबियत भी खराब हो गयी और वो नीचे चले गए है।  अब सब को लगने लगा कि पता नही कैसे होगा चलो उनकी जगह तो हमारे पास एक ओर सौरव सर थे जो हमारे साथ थे उनको ले लिया। 

खैर हम हमारे प्लान के हिसाब से चले ओर 1पहली अक्टूबर को हमारी पहली टीम कैम्प 2 पे शिफ्ट कर गयी और अगली सुबह दूसरी टीम। ये कैम्प 5900 मीटर की ऊंचाई पर था तो यहां शायद रुकना संभव नही था इसी लिए हमने 3 को ही फाइनल अटेम्प्ट करने का निर्णय लिया और शाम को 5 बजे कहना के सो गए।  रात को 1 बजे उठे लेकिन ये क्या बाहर तो मोसम बहुत खराब है औरर हमारा निकलना लगभग नामुमकिन है तो हमने आज ना जाने का निर्णय लिया  अगले पूरे दिन ओर रात एसी ही सोनोफाल होती रही और हम टेंट के अंदर पानी गर्म करते रहे । 4 का अटेम्प्ट भी रद्द हो गया    

अब हमारे पास सिर्फ एक दिन का ही राशन बचा था जो कि हमारे सबसे बुरे वक्त के लिए था और शायद वो यही था।  हम फिर 6 बजे सो गए आज मौसम कुछ ठीक लग रहा था तो उमीद की की हो जाएगा । लेकिन जब हम 12 बजे उठे तो मौसम फिर खराब।


अब हमारे पास बस दो ही रास्ते थे कि ऊपर चले जाएं या नीचे चले जाएं क्योंकि भूखे पेट पहाड़ नही चढ़ सकते। हमने मौसम को चुनौती देने का निर्णय लिया और 1 साथी जिसकी तबियत खराब थी को छोड़ के 6 लोग ओर 3 शेरपा ओर सौरव सर आगे निकल गए।  थोड़ी दूर पर ही समझ आगया कि खराब मौसम में इस ऊँचाई पर चलना कितना मुश्किल है।  अब यह हमारी सबसे बड़ी मुसीबत थी  निईफ रिज एक पर रखने की जगह ओर बड़े बड़े केमल बम्प । 

 इस जगह को समझने  के लिए तो यहाँ जाना ही होगा दोनों साइड 2000 मीटर की गहरी खाई ओर एक पेर पे एक रोप के सहारे चढ़ाई करना। ये थी इस एक्सपीडिशन की सबसे मुश्किल जगह हमने इसको तकरीबन 4 घण्टे में बेहद खराब मौसम में पर किया और अंतिम चढ़ाई के लिए पहुंचे, लेकिन ये कुछ हम तो बस 2 शेरपा ओर 2 टीम मेंबर ही है बाकी तो बहुत पीछे रख गए है। यह 6350 मीटर पे ज्यादा देर खड़ा रहना बहुत मुश्किल है तो हमने धीरे धीरे आगे बढ़ने का निर्णय लिया और आगे चल दिया। 

मौसम धीरे धीरे बहुत बहुत खराब हो रहा था और हम बात कर रहे थे और ऐसा करते करते हम आखिरकार 11:30 बजे समिट रॉक पे पहुचे लेकिन बस  हम 4 ही। ये क्षण अदभुत एनर्जी वाला और सब तकलीफ भुलाने वाला था। हमने तिरंगा फहराया लेकिन पीछे वाली टीम खराब मौसम में कही दिखाई नही दे रही थी और हम लोग पहले ही 2 घण्टे लेट थे ओर तूफान में यहाँ रुकना नामुमकिन था, तो हम वापस नीचे की ओर चल दिये।  हमे हमारी बाकी टीम के 3 मेंबर तकरीबन 30 मिनट बाद मिले और बाकी सब नाइफ रिज पर थे। हम वापस शाम को 6 बजे कैम्प 2 पहुचे। आज हमारे पास खाने को बस कुछ मैगी थी तो खाई,पानी पिया और सो गए। 

अगली सुबह पास ही एक ओर 6000 मीटर की भरद्वाज चोटी को क्लाइंब करके शाम तक कैम्प 1 पहुचे।  यह सामने हमारा इंतज़ार सौरव सर कर रहे थे। भारी बर्फबारी में उनके देखकर बहुत खुशी मिली वो नीचे जाके चेकअप करवा के वापस आगये थे। खैर जब उनको पता चला कि हम अटेम्प्ट करके आये है तो वो बहुत गुस्सा और खुश भी हुए । आपने स्टूडेंट्स का कारनामा उन्होंने साथ मिलके एन्जॉय किया अगली सुबह बेस कैम्प आके हमने बढ़िया खाना खाया।  शाम को मिठाई और केक बना जिसका सबने आनंद उठाया और अगली सुबह वापस निकल गए । 

ये था हमारा माउंट सतोपंथ का एक्सपीडिशन 
इसका एक वीडियो यूट्यूब पे है चाहे तो वो भी देख सकते है

मेरे लेख में क्या सुधार कर सकता हु राय जरूर देना 
धन्यवाद 

Nim Heros of Kedarnath reconstruction










केदारनाथ त्रासदी की बरसी के मौके पर एनआईएम के जांबाजों के जज्बे को सलाम | 


केदारनाथ त्रासदी की बरसी के मौके पर तमाम बातों में तकलीफ, अव्यवस्था, लापरवाही जैसे विषय घुले मिले हैं। सिर्फ चार धाम यात्रा सुखद अहसास करा रही है। यात्रियों से अटे पडे़ यात्रा मार्ग के संदेश एकदम साफ हैं।
चार धाम यात्रा की गाड़ी सरपट दौड़ रही है। साथ में दौड़ रही है हम सब की उम्मीद की इस बार तो यात्रा के सीने पर चस्पा आपदा के दाग पूरी तरह से धुल जाएंगे। अब तक 15 लाख यात्री उत्तराखंड पहुंच चुके है जिसमे 309764 यात्री केदारनाथ के दर्शन कर चुके है और अभी चार महीने की यात्रा शेष है | ये संख्या 2012 में आये 573040 का आकड़ा छू सकता है अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो | त्रासदी की बरसी पर इसमें बहे लोगो को श्रद्धांजलि पर इसमें कोई दो राय नही उनका सम्मान भी किया जाना चाहिए जिन्होंने विषम परिस्थितियों में कार्य करते हुए केदारधाम को न केवल यात्रियों के लिए अनुकूल बनाया, बल्कि यात्र शुरू कराने में भी अहम भूमिका निभाई।
सरकार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी केदारनाथ धाम की यात्रा में सबके चेहरे खिले हुए है | 2013 जून में आई आपदा के 9 महीने बाद में सोचना मुश्किल था की 2014 में यात्रा शुरू हो पायेगी | सरकारी संस्थानों ने हाथ खड़े कर दिए थे ऐसे में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की टीम लीडर प्रिंसिपल अजय कोठियाल के साथ आगे आई और रास्ते नहीं खुलने की अटकलों पर विराम लगा दिया | आपदा के बाद केदारनाथ धाम यात्रा शुरू कराने की चुनौती से निपटने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दो मार्च को देहरादून में बैठक बुलाई | यात्रा शुरू कराना असम्भव माना जा रहा था | ऐसे में एनआईएम के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल ने आगे आकर चुनौती को स्वीकार किया | चार मार्च को केदारधाम की हेलीकाप्टर से रेकी की गई | इसके बाद कोठियाल ने टीम का सलेक्शन किया और रणनीति बनाकर इसे धरातल पर उतारने की तैयारी शुरू हुई | 10 मार्च को एनआईएम की टीम 230 मजदूरों के साथ सोनप्रयाग पहुंची | सोनप्रयाग से रामबाड़ा तक लोनिवि के लिए इन्ही मजदूरों ने 11 किमी रास्ता बनाया | 17 मार्च को एनआईएम ने सोनप्रयाग में बेस कैंप तैयार किया और 21 मार्च को रामबाड़ा से केदारनाथ तक टीमें बनाकर 11 किमी का रास्ता तैयार करने का काम शुरू किया | बर्फ से ढके रास्ते को काटकर 15 अप्रैल को केदारनाथ तक रास्ता खोल दिया गया | इसके बाद एनआईएम की टीम ने महज 13 दिन लेंचुली में तीन हेलीकाप्टर उतरने लायक पक्का हेलीपेड बना डाला | लागत आई महज 25 लाख रूपये | धाम में केदारनाथ मंदिर पहुंचने के लिए उस जगह पुल बनाना जरूरी था , जहां से आपदा के दौरान एक एसडीएम की बहने से मौत हो गई थी | लोनिवि ने 25 तक यहां बेली ब्रिज बना पाने की बात कही | एनआईएम ने एक मई को टास्क लिया और तीन मई को यहां 8 मीटर चौड़ा और 24 मीटर लंबा बेली ब्रिज तैयार कर डाला | कर्नल और उसके जांबाज के थे ये टास्क --
1. कर्नल अजय कोठियाल -- एनआईएम के प्रधानाचार्य कोठियाल ने इस टास्क के दौरान दिखाया की टीम वर्क में कितनी ताकत होती है | उनके जज्बे के आगे टास्क छोटा पड़ा |
2. डीआईजी जीएस मर्तोलिया --एसडीआरएफ के चीफ मर्तोलिया ने पूरी अवधि में टीम का न सिर्फ मार्गदर्शन किया बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी किया |
3 . परवेंद्र डोभाल -- एसडीआरएफ के एएसपी डोभाल ने अपने 40 जवानों के साथ पूरे यात्रा मार्ग पर एनआईएम टीम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया |
4. दशरत सिंह रावत -- एनआईएम के दशरत ने रामबाड़ा से आगे ATV के माध्यम से निर्माण सामग्री आदि जरूरत का सामान सप्लाई करने की जिम्मेदारी संभाली |
5. गिरीश राणाकोटी -- एनआईएम के गिरीश ने लेंचुली से केदारनाथ तक चार किमी हिस्से में बर्फ काटकर रास्ता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
6 . मनोज सेमवाल -- एनआईएम के मनोज सेमवाल बेस कैंप पर क्वाटर मास्टर की भूमिका निभाई | समय पर जरुरत का सामान उपलब्ध कराना उनकी जिम्मेदारी थी |
7. रणजीत सिंह -- एनआईएम के रणजीत ने सोनप्रयाग से केदारनाथ तक संचार व्यवस्था इन्होने संभाली | आठ वॉकी टॉकी सेट के माध्यम से समय पर जरूरत का सामान एव मदद मौके तक पहुंचाई जा सकी |
8 . कृष्ण कुड़ियाल -- उत्तरकाशी के आर्किटेक्ट केसी कुड़ियाल ने रास्ता , हेलीपैड , पुल आदि निर्माण में अपने कौशल का परिचय दिया |
9. योगेंद्र राणा -- रामबाड़ा और आसपास के छेत्र में रास्ते के निर्माण की जिम्मेदारी योगेंद्र ने संभाली |
10. कमल जोशी एव धर्मेश -- इन्होंने मजदूरों को साथ लेकर छोटी लेंचुली में रास्ता तैयार किया |
11. देवेंदर -- पूरे दिन में हुए कार्यों की प्रगति रिपोर्ट कर्नल को देना ताकि अगले दिन की रणनीति बन सके |